दोस्तों शेयर मार्केट को दुनिया का सबसे बड़ा बिज़नेस कहा जा सकता है। और जैसा कि हम जानते हैं सभी तरह के बिज़नेस को बढ़ाने और उससे प्रॉफिट कमाने के लिए बहुत मेहनत, ज्ञान, समझदारी, समय और संयम की आवश्यकता होती है वैसे ही शेयर मार्केट भी में प्रॉफिट कमाने के लिए हमें यही चीजों की आवश्यकता होती है।
भारतीय शेयर बाजार (Indian Stock Market) में वैसे तो बहुत सारी कंपनी लिस्टेड है लेकिन उसमें से सही कंपनी का चुनाव करने में हमें काफी समझदारी, ज्ञान और रिसर्च की आवश्यकता होती है। अगर हम सही शेयर का चुनाव करके उसमे निवेश (Invest) करते हैं तो हमें वह अच्छा प्रॉफिट दे सकता है। इसके मुकाबले अगर हम कहीं टिप्स या फिर दूसरों की बातों में आकर कोई भी कंपनी में निवेश कर देते हैं तो यह रिस्क भरा हो सकता है। और यहां तक कि इसमें काफी नुकसान (Loss) भी हमें हो सकता है।
यहां पर मैं कुछ पैरामीटर्स आपके सामने रख रहा हूं, जिसकी मदद से आपको अच्छे से चुनने में आसानी होगी और आप अच्छे कंपनीज को ठीक से समझ पाएंगे और अच्छे प्रॉफिट निकाल पाएंगे। तो चलिए दोस्तों स्टार्ट करते हैं और जितने भी पैरामीटर से उसके बारे में विस्तार (Detail) से समझते हैं कि हमें किसी भी कंपनी में इन्वेस्ट करने के लिए कौन-कौन सी चीजें देखनी चाहिए। दोस्तों हम लोग किसी भी कंपनी के शेयर दो तरह से खरीदते है :
- कम समय या नियमित रूप से शेयर की खरीदारी और बिकवाली करना (Trading)
- लम्बे समय के लिए किसी कंपनी में निवेश करना। (Investing)
यहाँ मैं आपको इन्वेस्टिंग से जुड़ी जरुरी बातें बताऊँगा जिसका उपयोग करके आप शेयर मार्केट में ज्यादा नुकसान से बच सकते हैं।
1. भविष्य में बढ़ने वाले सेक्टर का चुनाव करें:
दोस्तों हमें शेयर मार्केट में नुकसान से बचने के लिए उसी सेक्टर का चुनाव करना चाहिए जिसकी भविष्य में बढ़ने की उम्मीद है। अगर हम पुराने टेक्नोलॉजी के निर्माण करने वाली कंपनी में निवेश करते हैं तो आगे जाकर वह कंपनी बंद भी हो सकती है या फिर उस कंपनी का ग्रोथ बहुत कम भी सकता है। जैसे कि डीवीडी प्लेयर्स या फिर एक तरह से कहें तो आने वाले समय में पेपर सेक्टर में भी हमें ग्रोथ कम नजर आ रहा है, क्योंकि डिजिटल इंडिया की शुरुआत हो गई है और आने वाले समय में काफी क्षेत्र में हमें पेपर लेस काम होते हुए नजर आएगा। दोस्तों भविष्य में बढ़ने वाले सेक्टर में ही फोकस में रखना जैसे कि, IT Sector, Pharma Sector, Banking Sector, FMCG, Auto Sector, Green Energy, Electric Vehicle, Artificial Intelligence, Drone आदि I
2. कंपनी के मैनेजमेंट और बिजनेस मॉडल को समझें :
दोस्तों मैनेजमेंट किसी भी कंपनी लॉस मेकिंग कंपनी को प्रॉफिट में ला सकते हैं और किसी भी प्रॉफिट मेकिंग कंपनी को लॉस में ले जा सकते हैं। इसलिए किसी भी कंपनी में निवेश करते समय हमें उस कंपनी के मैनेजमेंट की जानकारी होना बहुत जरुरी होता है। मैनेजमेंट के बारे में निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए :-
- हमें यह देखना चाहिए कि कंपनी आने वाले समय में क्या-क्या मिशन और किस प्रगति और लक्ष्य पर कार्य कर रही है। और मैनेजमेंट क्या क्या घोषणा कर रहे हैं।
- हमें यह देखना चाहिए कि जो मैनेजमेंट टीम या प्रमोटर्स हैं उनकी योग्यता और अनुभव क्या हैं। जिससे वह कंपनी को और आगे ले जा सकें।
- दोस्तों हमें यह भी देखना चाहिए कि उसमें जो मैनेजमेंट या प्रमोटर है अपने ही कंपनी के शेयर को पब्लिक से खरीद रहे हैं या फिर ज्यादा हिस्सेदारी रखे हुए हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि उस कंपनी पर मैनेजमेंट को विश्वास है। अगर कंपनी में ज्यादा हिस्सेदारी मैनेजमेंट या प्रमोटर की होगी तो उस कंपनी अच्छी है।
3. कंपनी के फाइनेंसियल डाटा देखें:
दोस्तों किसी भी कंपनी में निवेश करने के लिए हमें पहले उस कंपनी का फाइनेंस शेयर डाटा देखना बहुत ही जरूरी होता है। फाइनेंशियल डाटा में हमें चार चीजें मुख्य रूप से देखनी चाहिए:
- Quarter on Quarter Result : दोस्तों कोई भी कंपनी अगर Q to Q अच्छा सेल्स और अच्छा नेट प्रॉफिट कमा रही है तो आने वाले समय में भी उस कंपनी से हम उम्मीद कर सकते हैं कि उसका बिज़नेस अच्छा आएगा।
- Year on Year Profit/ Loss : दोस्तों हमें Year on Year Profit/ Loss कंपनी का देखना चाहिए कि कंपनी साल दर साल सभी फाइनेंसियल ईयर में कैसा नेट प्रॉफिट जनरेट करके अपने शेयर होल्डर्स को दे रहा है। Year on Year ग्रोथ को देखते हुए अगर कंपनी अच्छा बिजनेस कर रही है तो आने वाले समय में उससे अच्छे मुनाफे की उम्मीद की जा सकती है।
- Balance Sheet : दोस्तों हमें कंपनी के बैलेंस शीट को भी देखना चाहिए कि कंपनी में कर्ज कितना है कंपनी के पास रिजर्व कितना है। कंपनी का कर्ज लगातार बढ़ते हुए नहीं होना चाहिए। अगर कर्ज बढ़ रहा है तो कंपनी के नेट प्रॉफिट और रिजर्व भी बढ़ना चाहिए तब इसको हम लोग एक पॉजिटिव सिग्नल मान सकते हैं।
- Cash Flow : दोस्तों किसी भी कंपनी को अच्छे से चलाने के लिए और उससे प्रॉफिट कमाने करने के लिए पॉजिटिव कैश फ्लो का रहना बहुत ही जरूरी है। किसी भी कंपनी में तीन प्रकार से कैश फ्लो होता है 1. Operating 2. Financing. 3. Investing.। कंपनी में कुछ फ्री कैश फ्लो की भी मात्रा रहनी चाहिए। अगर कंपनी में फ्री कैश फ्लो होता है तो वह और अच्छा बिजनेस कर सकता है। दोस्तों हमें कंपनी के Cash Flow नेगेटिव में नहीं मिलना चाहिए।
4. कंपनी का Market Capitalization देखें:
किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले हमें कंपनी का मार्केट कैपटलाइजेशन देखना बहुत ही जरूरी होता है क्योंकि अगर हम लोग अच्छे मार्केट कैपटलाइजेशन वाले कंपनी में निवेश करेंगे तो वह हमें अच्छा प्रॉफिट दे सकता है इसके मुकाबले अगर हम 50-100 करोड़ वाले मार्केट कैप की कंपनी में निवेश करेंगे तो वह रिस्क भरा हो सकता है।
मार्केट कैपटलाइजेशन के हिसाब से हम लोग कम्पनीज़ को तीन भाग में बाँट सकते है। 1. Small cap, 2. Mid cap और 3. Large cap.
हमें Mid Cap और Large cap कंपनी में अपने निवेश राशि का 90% रखना चाहिए। और Small cap में या Penny Stocks में निवेश ना करें तो ज्यादा अच्छा है लेकिन अगर कंपनी के सारे पैरामीटर्स ठीक हैं तो भी हमें अपने निवेश राशि का 10% से ज्यादा निवेश नहीं करना चाहिए।
5. P/E Ratio – Price to Earning Ratio :
दोस्तों किसी भी कंपनी में निवेश करते समय हमें PE Ratio (Price Earning Ratio) को देखना बहुत ही जरूरी होता है। PE Ratio से हमें पता चलता है कि कंपनी सस्ता है या महंगा है। दोस्तों PE Ratio को चेक करने के लिए हमें कंपनी के शेयर के Current Market Price को Earnings per Share (EPS) से भाग देना होता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं अगर किसी भी कंपनी का Current Market Price 100रु. है और उस कंपनी का Earnings per Share (EPS) 20रु. है तो इस प्रकार कंपनी का PE Ratio होगा:
100(Current Market Price) ÷ 20(EPS) = 5 (PE Ratio)
दोस्तों यहां पर PE Ratio 5 है। इसका मतलब हमें इस कंपनी में ₹20 कमाने के लिए इस कंपनी में 5 गुना ज्यादा पैसा दे रहे हैं।
दोस्तों कभी-कभी लोग कम PE Ratio वाले कंपनी को सस्ता और अंडरवैल्यूड समझ लेते हैं। यह कुछ हद तक सही भी है लेकिन अगर PE Ratio कम हो तो उसमें यह भी हो सकता है कि उसमें शेयर होल्डर्स का रुझान कम हो। दोस्तों अगर हमें कंपनी के सस्ते और महंगे का पता लगाना है तो हमें PE Ratio के साथ-साथ उस सेक्टर की Industry PE को भी देखना चाहिए अगर Industry PE ज्यादा है और Stock PE या PE Ratio कम है, तो हम कंपनी को अपने सेक्टर के मुकाबले में को अंडरवैल्यूड मान सकते हैं।
6. Earning Per Share (EPS) :
दोस्तों Earning Per Share (EPS) का मतलब होता है कंपनी के फाइनेंसियल ईयर की नेट प्रॉफिट (Net Profit) में प्रत्येक शेयर को कितना हिस्सा मिला है। यहां पर हमें Earning Per Share का कैलकुलेशन करने के लिए कंपनी के नेट प्रॉफिट को टोटल नंबर ऑफ शेयर्स से भाग देना होता है I तो हमें Earning Per Share मिल जाता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं मान लेते हैं कि ABC कंपनी के टोटल शेयर्स की संख्या 1000 है और कंपनी ने साल भर में 5000 का नेट प्रॉफिट किया है तो उस कंपनी का अर्निंग पर शेयर होगा
5000 ÷ 1000 = 5
दोस्तों यहाँ पर प्रत्येक शेयर को नेट प्रॉफिट में से 5रु. मिलेंगे इसलिए Earning Per Share (EPS) 5रु. होगा।
दोस्तों नेगेटिव EPS वाले कंपनी में हमें निवेश नहीं करना चाहिए। EPS जितना ज्यादा हो उतना ही अच्छा होता है।
7. Return on Equity (ROE) and Return on Capital Employed (ROCE) :
ROE और ROCE दोनों बहुत ही महत्वपूर्ण पैरामीटर्स है जो हमें किसी भी कंपनी में निवेश करने से पहले जरूर देखना चाहिए।
- Return on Equity (ROE) : यह Raio हमें यह बताता है कि कोई कंपनी अपने कुल इक्विटी पर कितना रिटर्न बना पा रहा है। जैसे की XYZ Ltd. में 1000रु. की शेयर कैपिटल है और इस कंपनी के पास 1000रु. के रिज़र्व भी है तो इस प्रकार कंपनी की कुल इक्विटी 2000 रु. होगा। कंपनी ने इस साल का नेट प्रॉफिट 1500 रु. है। तो यहाँ XYZ Ltd. का Return on Equity हो जायेगा :
Return on Equity = (Net Profit / Total Equity) x 100 (1500 ÷ 2000) x 100 = 75 %
तो इस प्रकार ROC होगा 75%. Return on Equity (ROE) जितना ज्यादा हो उतना ही अच्छा होता है।
- Return on Capital Employed रेशों हमें यह बताता है कि कंपनी अपने कुल लगाए हुए पैसे या फिर कहें इन्वेस्टमेंट पर कितना रिटर्न जनरेट किया है दोस्तों यहां पर कंपनी के कुल इन्वेस्टमेंट में हम कंपनी के द्वारा लिए गए कर्ज को भी शामिल करेंगे। मान लेते हैं कि यदि कंपनी के शेयर कैपिटल 500रु. है और कंपनी में 200रु. का रिजर्व भी है इसके अलावा कंपनी ने 200रु. का कर्ज भी लिया हुआ है। उसके बाद इन सभी राशि को मिलाकर कंपनी अपने बिजनेस में इन्वेस्ट करेगी और उसके बाद एक फाइनेंसियल ईयर में कंपनी का Net Operating Profit या Earnings Before Interest and Taxes(EBIT) 500रू. रहा तो उसका ROCE इस प्रकार होगा:-
RoCE = (EBIT ÷ Capital Employed) x 100 (500 ÷ 900) x 100 = 55.55 %
तो इस प्रकार ROCE होगा 55.55%. Return on Capital Employed (ROCE) जितना ज्यादा हो उतना ही अच्छा होता है।
8. Promoter और FIIs, DIIs की Holdings :
इन्वेस्ट करने से पहले हमें शेयरहोल्डिंग पेटर्न (Shareholding Pattern)को भी चेक करना बहुत जरूरी है। क्योंकि अगर किसी कंपनी में प्रमोटर ज्यादा है तो हमें उस कंपनी पर विश्वास कर सकते हैं इसके साथ ही अगर उस कंपनी में FIIs (Foreign Institutional Investors) और DIIs (Domestic Institutional Investors) का इन्वेस्टमेंट है तो वह और भी अच्छा होता है। अगर किसी कंपनी में पब्लिक ज्यादा है और प्रमोटर कम है तो ऐसी कंपनी को रिस्क भरा मान सकते हैं। कुछ कंपनी ऐसी होती है जिन पर प्रमोटर होल्डिंग वाले यह पॉइंट्स लागू नहीं होते जैसे कि कुछ प्राइवेट बैंक्स या फिर कुछ 2-4 कम्पनीज़।
साथ ही हमें यह भी देखना चाहिए कि प्रमोटर की कोई भी हिस्सेदारी गिरवी (Pledged Holdings) नहीं होना चाहिए। किसी भी कंपनी में अगर 50% प्रमोटर हैं और 20% FIIs और 10% DIIs और 30% पब्लिक है तो इसको हम एक अच्छा शेयर होल्डिंग पैटर्न कह सकते हैं जो कि एक अच्छी कंपनी में होना चाहिए। लेकिन अगर किसी कंपनी में 20% प्रमोटर है और 80% पब्लिक है FIIs और DIIs की कोई भी होल्डिंग नहीं है या फिर होल्डिंग पहले थी अब निकल चुकी है तो इसको हम लोग रिस्क भरा मान सकते हैं ऐसे कंपनी में हमें निवेश नहीं करना चाहिए।
9. कर्ज़ मुक्त (Debt Free) कंपनी का चुनाव करें :
अगर हम किसी कंपनी में निवेश कर रहे हैं। हमें यह देखना बहुत जरूरी है कि उस कंपनी में कर्ज कितना है। अगर कंपनी कर्ज मुक्त है, तो यह बहुत ही अच्छा है, लेकिन अगर कंपनी में कर्ज है। और कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है तो यह रिस्क भरा हो सकता है। अगर कंपनी में नेट प्रॉफिट भी लगातार बढ़ रहे हैं और कर्ज भी बढ़ रहा है साथ ही साथ कंपनी का सेल भी बढ़ रहा है तो यह एक नॉरमल कंडीशन हो सकता है। लेकिन अगर कंपनी का नेट प्रॉफिट और कंपनी के सेल्स कम हो रहे हैं और कर्ज बढ़ रहा है तो यहाँ रिस्क हो सकता है और नुकसान की चांसेस बहुत ज्यादा है। ऐसे स्टॉक में बिल्कुल ही निवेश ना करें या फिर अगर निवेश किए हैं तो उसे बाहर निकल जाएं।
10. डिविडेंड (Dividend) देने वाली कंपनी में निवेश करें :
दोस्तों डिविडेंड देने वाली कंपनी को चुनने का फायदा यह होता है कि ऐसी कंपनी अच्छा प्रॉफिट जनरेट करती है। अगर वह कंपनी अच्छा प्रॉफिट जनरेट करती है इसीलिए अपने शेयर होल्डर को डिविडेंड दे पाती है। तो यदि आप किसी डिविडेंड देने वाली कंपनी में निवेश करते हैं तो समय पर आपको डिविडेंड भी मिलेगा जो आपका एक अलग से इनकम रहेगा और साथ ही साथ आप किसी अच्छे कंपनी के निवेशक भी रहेंगे आपका जो निवेशित अमाउंट है वह बढ़ता ही रहेगा।
निष्कर्ष :
दोस्तों जितने भी पॉइंट्स मैंने यहां पर रखे हैं वह आपके एजुकेशनल हेल्प के लिए है ताकि आपको सारे पॉइंट्स की जानकारी हो और आप शेयर मार्केट में लॉस से बच सकें लेकिन अगर किसी भी कंपनी में आप निवेश करते हैं तो अपने फाइनेंसियल एडवाइजर की सलाह लें और अपने रिस्क के हिसाब से ही इन्वेस्ट करें। बाकी जो भी पॉइंट्स मैंने ऊपर आपको बताए हैं उनको पढ़ें स्टडी करें उन पर रिसर्च करें ताकि आप अच्छे से स्टॉक मार्केट को समझ पाएँ और प्रॉफिट कमा सकें।
दोस्तों अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगी तो कृपया इसको अपने दोस्तों और परिवारों में साझा करें। जिससे सभी स्टॉक मार्केट से जुडी इस बेसिक जानकारी को जान और समझ पाएँ।