दोस्तों स्टॉक मार्केट में ऑप्शन ट्रेडिंग (Option Trading) करने के लिए call और put ऑप्शन को जानना बहुत जरुरी है इसको जाने बिना हम ट्रेडिंग नहीं कर सकते। इस ब्लॉग में हम विस्तार से समझेंगे कि Call और Put ऑप्शन क्या होता है ? कॉल और पुट ऑप्शन में क्या अंतर है? और साथ ही हम कॉल और पुट को उदाहरण समझेंगे।
दोस्तों, शेयर बाजार में पैसा कमाने के विभिन्न तरीके होते हैं और इनमें से एक तरीका ऑप्शन ट्रेडिंग है। ऑप्शन ट्रेडिंग के माध्यम से आप तेजी से आकर्षक आय कमा सकते हैं, लेकिन इसमें उच्च रिस्क भी होता है। अगर किसी के पास ऑप्शन ट्रेडिंग के बेसिक ज्ञान नहीं है, तो उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। ऑप्शन ट्रेडिंग में हम कॉल और पुट ऑप्शन का खरीद और बेच कर मुनाफा कमाते हैं, यह स्टॉक मार्केट के इंडेक्स जैसे निफ्टी, बैंक निफ्टी, और फाइनेंस निफ्टी में भी आप्लाई किया जा सकता है, साथ ही स्टॉक्स में भी जैसे कि रिलायंस इंडस्ट्रीज, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टीसीएस, इंफोसिस आदि।
इस ब्लॉग में आज हम जानेंगे :
- Call और Put ऑप्शन क्या होता है ?
- Call और Put ऑप्शन में क्या अंतर होता है ? Call और Put ऑप्शन का चुनाव कैसे करें ?
- स्ट्राइक प्राइस और प्रीमियम क्या है?
- ऑप्शन ट्रेडिंग में नुकसान (loss) से कैसे बचें ?
- ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करें ?
१. Call और Put ऑप्शन क्या होता है ?
ऑप्शन ट्रेडिंग में कॉल या पुट ऑप्शन खरीदने की प्रक्रिया उसके स्ट्राइक प्राइस और प्रीमियम के आधार पर होती है। अगर बाजार में ऊपर की ओर मुद्रित हो रहा है, तो हम किसी विशिष्ट स्टॉक जैसे कि रिलायंस इंडस्ट्रीज, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टीसीएस, इंफोसिस आदि या फिर इंडेक्स जैसे कि निफ्टी, बैंक निफ्टी, फिनिफ्टी आदि के कॉल ऑप्शन को उसके स्ट्राइक प्राइस के प्रीमियम के आधार पर खरीदते हैं। जब स्टॉक या इंडेक्स की मूल्य में वृद्धि होती है, तो कॉल ऑप्शन के प्रीमियम का मूल्य भी बढ़ता है, जिससे हमें लाभ होता है। इसी प्रकार, यदि हम किसी स्टॉक या इंडेक्स के कॉल ऑप्शन को खरीदते हैं और उसकी मूल्य में कमी होती है, तो उसके स्ट्राइक प्राइस के प्रीमियम का मूल्य भी घटता है, जिससे हमें नुकसान होता है।
विपरीत रूप से, यदि हम कॉल ऑप्शन खरीदते हैं और बाजार या किसी स्टॉक की मूल्य नीचे जाने लगती है, तो हमारे प्रीमियम का मूल्य कम होने लगता है और हमें नुकसान होता है। इसलिए, ऑप्शन ट्रेडिंग में सफलता प्राप्त करने के लिए सही स्ट्रैटेजी का चयन करना और मार्केट की स्थिति को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण होता है।
Call और Put Option के महत्वपूर्ण बिंदु :
- Call option को CE कहा जाता है। CE की फुल फॉर्म Call European है। Put option को PE कहते हैं। PE की फुल फॉर्म Put European है।
- ऑप्शन लॉट में ही ख़रीदा जा सकता है।
- हर ऑप्शन लॉट में स्टॉक या इंडेक्स की निर्धारित संख्या होती है।
- कॉल ऑप्शन ख़रीदने पर तब फायदा होगा जब उस स्ट्राइक प्राइस के CE प्रीमियम की कीमत बढ़ती है।
- कॉल ऑप्शन ख़रीदने पर तब नुकसान तब होगा जब स्टॉक या इंडेक्स के उस स्ट्राइक प्राइस के CE प्रीमियम की कीमत कम होने लगती है।
- पुट ऑप्शन ख़रीदने पर तब फायदा होगा जब उस स्ट्राइक प्राइस के PE प्रीमियम की कीमत बढ़ती है।
- पुट ऑप्शन ख़रीदने पर तब नुकसान तब होगा जब स्टॉक या इंडेक्स के उस स्ट्राइक प्राइस के PE प्रीमियम की कीमत कम होने लगती है।
- ऑप्शन का प्रयोग करने की अंतिम दिन को Expiry Date कहा जाता है।
- इंडेक्स (जैसे : Nifty, Bank Nifty, Finnifty आदि) की एक्सपायरी डेट वीकली होती है जो हर सप्ताह गुरुवार को होती है।
- स्टॉक्स ( जैसे : Reliance Industries, Mahindra & Mahindra, TCS, Infosys आदि) के ऑप्शन की एक्सपायरी डेट एक महीने की होती है जो हर महीने के अंतिम गुरुवार को होती है।
- पुट ऑप्शन शेयर मार्केट क्रैश में भी प्रॉफिट कमाने का अवसर देता है।
2. Call और Put ऑप्शन में क्या अंतर होता है ? Call और Put ऑप्शन का चुनाव कैसे करें ?
जब हम मानते हैं कि बाजार के इंडेक्स या किसी विशिष्ट स्टॉक की मूल्य में वृद्धि होने की संभावना है, तब हम उसके स्ट्राइक प्राइस के कॉल ऑप्शन (CE) को खरीदते हैं। और यदि हमारी विचारधारा है कि बाजार के इंडेक्स या किसी स्टॉक की मूल्य में गिरावट होने की संभावना है, तो हम उसके स्ट्राइक प्राइस के पुट ऑप्शन (PE) को खरीदते हैं। कॉल (CE) और पुट (PE) ऑप्शन में यही मुख्य अंतर होता है कि कॉल ऑप्शन को हम मूल्य में वृद्धि की संभावना में खरीदते हैं जबकि पुट ऑप्शन को हम मूल्य में गिरावट की संभावना में खरीदते हैं। कॉल और पुट ऑप्शन की खुद की कोई मूल्य नहीं होती है। इनकी मूल्यवान गुणवत्ता केवल बाजार की उपरी या निचली दिशा पर निर्भर करती है, जो प्रीमियम के आधार पर निर्धारित होती है।
3. स्ट्राइक प्राइस और प्रीमियम क्या है?
स्ट्राइक प्राइस एक कॉल ऑप्शन या पुट ऑप्शन के उदाहरण में वह मूल्य होता है जिस पर खरीदार को स्टॉक को खरीदने या बेचने का अधिकार होता है। इसका एक महत्वपूर्ण प्रभाव ऑप्शन की मूल्य पर होता है, क्योंकि यह तय करता है कि खरीदार किस मूल्य पर स्टॉक खरीदने का अधिकार रखता है।
इसे एक उदाहरण से समझते हैं यहाँ हम बैंक निफ़्टी का उदाहरण लेंगे। जैसे कि यदि बैंक निफ़्टी का प्राइस 45000 चल रहा है तो हमें ऑप्शन ट्रेडिंग में बहुत सारे स्ट्राइक प्राइस के ऑप्शंस मिल जाते हैं जैसे कि 44800, 44900, 45000, 45100, 45200, 45300, 44900 आदि इस तरह स्ट्राइक प्राइस बने हुए होते हैं और इस प्रत्येक स्ट्राइक प्राइस का प्रीमियम मूल्य होता है। इस स्ट्राइक प्राइस को खरीदने के लिए इसके प्रीमियम को हमें पे करना होता है। प्रीमियम वह है जो इस स्ट्राइक प्राइस का मूल्य है।
ऑप्शन ट्रेडिंग करते समय आपके अलग-अलग स्ट्राइक प्राइस के ऑप्शंस मौजूद होते हैं जो इस प्रकार हैं :
इन द मनी ऑप्शन (ITM) :
“इन-द-मनी” ऑप्शन वह ऑप्शन होते हैं जिनमें विकल्प के प्रमुख स्ट्राइक प्राइस के साथ ही वर्तमान मूल्य में भारी परिवर्तन होता है। कॉल ऑप्शन में, यदि स्टॉक की मौजूदा मूल्य कॉल ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस से ऊपर होती है, तो वह कॉल ऑप्शन “इन-द-मनी” होती है। पुट ऑप्शन में, यदि स्टॉक की मौजूदा मूल्य पुट ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस से नीचे होती है, तो वह पुट ऑप्शन “इन-द-मनी” होती है। इसका मतलब होता है कि अगर आप इन-द-मनी ऑप्शन में ट्रेड करते हैं, तो आपको लाभ होने की संभावना बढ़ जाती है।
एट द मनी ऑप्शन (ATM)
“एट द मनी” ऑप्शन, जिन्हें “इन-द-मनी” ऑप्शन भी कहा जाता है, वे ऑप्शन होते हैं जिनमें स्ट्राइक प्राइस के साथ ही मूल्य में वृद्धि होती है। कॉल ऑप्शन में, स्ट्राइक प्राइस से कम मूल्य वाले ऑप्शन को “एट द मनी” कॉल ऑप्शन कहते हैं, जबकि पुट ऑप्शन में, स्ट्राइक प्राइस से अधिक मूल्य वाले ऑप्शन को “एट द मनी” पुट ऑप्शन कहते हैं। इन-द-मनी ऑप्शन के मूल्य प्रमुखतः स्ट्राइक प्राइस, मूल्य में परिवर्तन, समय, और वॉलेटिलिटी के आधार पर निर्धारित होते हैं।
आउट द मनी ऑप्शन (OTM)
“आउट द मनी” ऑप्शन वे ऑप्शन होते हैं जिनके स्ट्राइक प्राइस के साथ वर्तमान मूल्य में कम वृद्धि होती है। कॉल ऑप्शन में, स्टॉक की मौजूदा मूल्य कॉल ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस से कम होती है और पुट ऑप्शन में, स्टॉक की मौजूदा मूल्य पुट ऑप्शन के स्ट्राइक प्राइस से अधिक होती है। “आउट द मनी” ऑप्शन के मूल्य स्ट्राइक प्राइस, मूल्य में परिवर्तन, समय, और वॉलेटिलिटी के आधार पर निर्धारित होते हैं।
यहां पर मैं बैंक निफ़्टी के स्ट्राइक प्राइस को एक उदाहरण के लिए आपको दिखा रहा हूँ।
इस फोटो में आप देख सकते हैं बैंक निफ़्टी की 45000 की कॉल की प्रीमियम ₹189 है जिसका एक्सपायरी डेट 10 अगस्त है।
4. ऑप्शन ट्रेडिंग में नुकसान (loss) से कैसे बचें ?
ऑप्शन ट्रेडिंग में नुकसान से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण टिप्स निम्नलिखित हैं:
निर्णय जल्दी लें : जब आपका मानना हो कि बाजार आगे बढ़ने वाला है और आपको कॉल (CE) खरीदना है, तो आपको तुरंत खरीदना चाहिए। इसका कारण है कि आपके निर्णय के साथ ही मूल्य बढ़ सकता है। आपको देरी नहीं करनी चाहिए। इसी तरह, यदि आपका नुकसान हो रहा है और आपका विचार है कि बाजार नीचे जाने की संभावना कम है, तो आपको स्टॉप लॉस जरूर से लगाना चाहिए। इससे आपको लॉस होने के चांसेस कम रहेंगे।
रिस्क क्षमता: अपने कैपिटल का समझदारी उपयोग करें और एक ही ट्रेड में अधिक पैसे न लगाएं। निवेश के लिए एक निश्चित पैसे ही उपयोग करें, ताकि एक ही ट्रेड के नुकसान से आपकी पूंजी बच सके।
स्टॉप लॉस ऑर्डर्स: स्टॉप लॉस ऑर्डर्स का उपयोग करके आप ट्रेड में नुकसान को कम कर सकते हैं। यह आपको निश्चित मूल्य पर अपने पोजीशन को बंद करने का विकल्प देता है, यदि मूल्य आपके अनुमानित स्तर से बाहर जाता है।
वोलेटिलिटी की समझ: वोलेटिलिटी ऑप्शन की मूल्य पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है, जिससे आपके नुकसान की संभावना बढ़ सकती है। अच्छे से वोलेटिलिटी की समझ लें और उसके अनुसार ट्रेड करें।
पेपर ट्रेडिंग: यदि आप नए हैं और ऑप्शन ट्रेडिंग को समझने में सावधानी बरतना चाहते हैं, तो “पेपर ट्रेडिंग” का उपयोग कर सकते हैं। इसमें आप वास्तविक पैसे का उपयोग नहीं करते हैं, लेकिन बाजार में वास्तविक मूवमेंट को समझते हैं।
5. ऑप्शन ट्रेडिंग कैसे करें ?
- दोस्तों ऑप्शन ट्रेडिंग करने के लिए आपको कॉल और पुट की सही जानकारी होना बहुत जरूरी है।
- इसके साथ-साथ आपको मार्केट से जुड़ी सभी वर्तमान न्यूज़ से अपडेट होना पड़ेगा।
- आपको मार्केट से जुड़ी सभी जानकारियां जो कि रीसेंट में चल रही है उसका जानकारी होना बहुत जरूरी है।
- ऑप्शन ट्रेडिंग में स्टॉक के फंडामेंटल्स या लॉन्ग टर्म वाली चीजें काम नहीं करती बल्कि तुरंत घटने वाली घटनाओं का इफेक्ट ऑप्शन ट्रेडिंग पर पड़ता है।
- कभी भी टिप्स के आधार पर ऑप्शन में ट्रेड नहीं करना चाहिए, बल्कि आपको इसकी पूरी समझ और नॉलेज होना चाहिए।
- आपको कैंडल चार्ट को भी समझना आना चाहिए
- आपको वॉल्यूम और ऑप्शन चार्ट की भी समझ होना चाहिए।
- इसके लिए आप अलग-अलग तरह के किताब पर भी पढ़ सकते हैं, जो आपको मदद करेगी।
- यहां मैं आपको कुछ किताबे ऑप्शन ट्रेडिंग के लिए सुझाव दे रहा हूं।
6. ऑप्शन ट्रेडिंग सीखने के लिए बेस्ट बुक्स
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- The Secrets to Success in Futures & Options – (From Indian Stock Market perspective) Amazon Link
FAQ’s on Call and Put Option in Hindi
1. शेयर मार्केट में कॉल और पुट का क्या मतलब है?
शेयर मार्केट में “कॉल” का मतलब “ऊपर की ओर” और “पुट” का मतलब “नीचे की ओर” होता है। अगर हमें लगता है कि बाजार ऊपर की ओर बढ़ेगा, तो हम “कॉल” (CE) खरीदते हैं। वैसे ही, यदि हमें लगता है कि बाजार नीचे जाएगा, तो हम “पुट” (PE) खरीदते हैं।
2. कॉल ऑप्शन कब खरीदें?
जब हमें लगता है कि किसी स्टॉक या इंडेक्स की मूल्य में वृद्धि की संभावना है, तो हम कॉल ऑप्शन खरीदते हैं। यह हमें उस मूल्य वृद्धि का लाभ उठाने का मौका देता है जो बाजार में आने की संभावना है। ध्यान दें कि कॉल ऑप्शन के प्रीमियम का मूल्य मार्केट के ऊपर के साथ बढ़ सकता है, जिससे हमें लाभ हो सकता है।
3. पुट ऑप्शन कब खरीदें?
यही हमें लगता है इंडेक्स या स्टॉक में गिरावट होने की संभावना है, तो हम पुट ऑप्शन खरीद सकते हैं। यह उस मूल्य गिरावट का लाभ उठाने का अवसर प्रदान करता है जो बाजार में हो सकता है। पुट ऑप्शन के प्रीमियम का मूल्य बाजार के डाउनवर्ड मूवमेंट के साथ बढ़ सकती है, जिससे आपको लाभ हो सकता है।
4. ऑप्शन की एक्सपायरी कब होती हैं?
ऑप्शन ट्रेडिंग में इंडेक्स (जैसे : Nifty, Bank Nifty, Finnifty आदि) की एक्सपायरी डेट वीकली होती है जो हर सप्ताह गुरुवार को होती है। और स्टॉक्स जैसे : Reliance Industries, Mahindra & Mahindra, TCS, Infosys आदि के ऑप्शन की एक्सपायरी डेट एक महीने की होती है जो हर महीने के अंतिम गुरुवार को होती है।